
Hajj 2025: हर मुसलमान के लिए हज यात्रा बहुत ही खास महत्व रखता है. इसलिए हर साल लाखों की तादाद में मुस्लिम श्रद्धालु सऊदी अरब के मक्का शहर की ओर इकट्ठा होते हैं और हज यात्रा की शुरुआत करते हैं. बता दें कि इस साल हज यात्रा की शुरुआत 4 जून 2025 से हुई थी और जो समाप्त हो चुका है.
हज यात्रा की शुरुआत इस्लामी चंद्र कैलेंडर के 12वें महीने जिल हुज्जा की आठवीं तारीख से होती है. इस्लाम में ऐसा कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में एक बार हज तीर्थयात्रा जरूर करनी चाहिए. इसका कारण यह है कि हज को इस्लाम के पांच मूलभूत स्तंभों में एक माना गया है. यानी हर मुसलमान पर हज ‘फर्ज’ है. हालांकि कुछ परिस्थितियों में हज की छूट भी दी जाती है.
हज यात्रा के जरूरी नियम
मुसलमानों को अल्लाह द्वारा हज की पवित्र तीर्थयात्रा पूरा करने का आदेश है. इसका जिक्र कुरान में भी मिलता है. अन्य पवित्र तीर्थयात्रा की तरह हज में भी कई तरह के अनुष्ठान और रीति रिवाज होते हैं, जिसे हर हज यात्री आध्यात्मिक, भावनात्मक और शारीरिक चुनौती के साथ पूरा करता है. इस दौरान बिना सिला हुआ सफेद कपड़ा पहनना पड़ता है, जिसे शरीर में सिर्फ लपेटा जाता है. हालांकि महिलाओं को यह छूट रहती है कि वह अपनी पसंद के अनुसार कोई भी सादा कपड़ा पहन सकती है. लेकिन फिर भी हिजाब के नियमों का पालन करना पड़ता है. इसी तरह हज यात्रा में कई तरह के नियम और रीति रिवाज होते हैं. आइए जानते हैं हज यात्रा के महत्वपूर्ण चार जरूरी नियमों के बारे में.
पहले दिन क्या होता है?
हज यात्रा के पहले दिन तीर्थयात्री मक्का पहुंचते हैं और सबसे पहले तवाफ करते हैं. इसमें हाजी काबा के चारों ओर 7 बार उल्टी दिशा में चक्कर लगाते हैं. इस नियम को एकता और अल्लाह के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है. तवाफ की शुरुआत और इसका अंत काबा के कोने में लगे हज्रे अस्वद यानी काले पत्थर से होता है. तवाफ के बाद हाजी सई करते हैं. इसमें सफा और मरवा की दो पहाड़ियों के बीच सात बार चक्कर लगाना होता है. इस रिवाज को भरोसा, संघर्ष और खुदा की रहमत का प्रतीक माना जाता है. इसके बाद हज यात्री मक्का से मीना की ओर रवाना होते हैं.
इस नियम के बिना अधूरी होती है हज यात्रा
पहले दिन की यात्रा के बाद दूसरे दिन की यात्रा की शुरुआत होती है. इसमें हज यात्री मैदान ए अराफात में इकट्ठा होकर सूर्यास्त तक खुदा की इबादत करते हैं. इसे वुकूफ कहा जाता है, जोकि हज यात्रा का सबसे अहम रिवाज है. अगर कोई हज यात्री यात्रा के दौरान वुकूफ में शामिल नहीं होता तो उसकी हज यात्रा अधूरी मानी जाती है. कहा जाता है कि, हज यात्रा के दूसरे दिन यानी वुकूफ में ही पैगंबर मोहम्मद साहब ने आखिरी तकरीर दी थी. मुसलमान चाहे हज यात्रा में हो या नहीं हो, फिर भी इस दिन रोजा रखने का महत्व है. सूर्यास्त के बाद हज यात्री मीना के पास मुलदलिफा पहुंचते हैं और खुले आसमान के नीचे रात बिताई जाती है. यहीं पर हज यात्री रमी के लिए कंकड़ इकट्ठा करते हैं.
शैतान को कंकड़ मारना
हज यात्रा के तीसरे दिन हाजी जमारात पर कंकड़ फेंकने के लिए फिर से मीना लौटते हैं. इस दिन शैतान को पत्थर मारने की पंरपरा होती है. यह हज यात्रा का अनिवार्य अनुष्ठान माना जाता है, जिसे रमी अल-जमरात कहा जाता है. इसमें यात्री शैतान के प्रतीक तीन स्तंभों पर कंकड़ मारते हैं.
बाल छोटे करवाने या सिंर मुंडवाने की परंपरा
हज यात्रा के बाद बाल कटवाने या सिर मंडवाने की परंपरा निभाई जाती है. इस दौरान पुरुष हज यात्री अपने बाल मुंड़वाते हैं. वहीं महिलाएं बालों को छोटा कराती है. इस परंपरा को जीवन के नए शुरुआत और परंपरा का प्रतीक माना जाता है. बाल कटवाने के बाद हाजी फिर से मक्का लौटकर तवाफ अल इफादा करते हैं और सई की ओर बढ़ते हैं. इन नियमों को पूरा करने के बाद हज यात्रा पूरी होती है.
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