
Kamakhya Temple: असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर देश के सबसे रहस्यमय और पवित्र शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर की एक खास परंपरा है, जिसमें हर साल तीन दिनों के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है और पुरुषों का प्रवेश वर्जित हो जाता है। यह सिर्फ एक धार्मिक नियम नहीं, बल्कि स्त्रीत्व और मातृत्व की शक्ति को सम्मान देने का प्रतीक है।
तीन दिन क्यों नहीं जा सकते पुरुष?
माना जाता है कि इन तीन दिनों में मां कामाख्या रजस्वला यानी मासिक धर्म में होती हैं। इस दौरान मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और पुरुषों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। यह कोई अपमान या भेदभाव नहीं, बल्कि मातृशक्ति और स्त्री के प्राकृतिक चक्र के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
इन दिनों मंदिर में कोई पूजा नहीं होती, ना ही देवी की मूर्ति के दर्शन किए जाते हैं। ऐसा मानना है कि जैसे महिला को मासिक धर्म के समय आराम की जरूरत होती है, वैसे ही देवी मां को भी इस समय विश्राम की जरूरत होती है।
चौथे दिन होता है विशेष स्नान और शुद्धिकरण
तीन दिन बाद चौथे दिन देवी का शुद्धिकरण और स्नान की विशेष पूजा होती है। इसके बाद मंदिर के दरवाजे फिर से श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। यह दिन बहुत शुभ माना जाता है और इसे नए आरंभ की तरह मनाया जाता है। हजारों श्रद्धालु इस दिन देवी के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं।
मासिक धर्म को लेकर समाज को संदेश
जहां आज भी मासिक धर्म को लेकर समाज में भ्रांतियां और शर्म जुड़ी हुई हैं, वहीं कामाख्या मंदिर की यह परंपरा एक सकारात्मक सोच को सामने लाती है। यहां रजस्वला स्त्री को अशुद्ध नहीं, बल्कि पूजनीय माना जाता है। यह परंपरा यह संदेश देती है कि प्राकृतिक प्रक्रिया जैसे मासिक धर्म, कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि सम्मान की हकदार है।
कामाख्या मंदिर की यह परंपरा हमें सिखाती है कि समाज में प्राकृतिक और जैविक प्रक्रियाओं को स्वीकार करना और उनका सम्मान करना जरूरी है। यह सिर्फ एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि मातृशक्ति के प्रति संवेदना और श्रद्धा का गहरा प्रतीक है।
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