
1947 में अलग मुल्क बनने के बाद से ही पाकिस्तान नाम की गाड़ी उधार के सहारे चल रही है. पैदाइश के 10 साल बाद ही पाकिस्तान को पहले कर्ज की जरूरत पड़ गई थी. संकट को समझते हुए पाकिस्तान अपने वजूद के तीन साल पूरा होने के बाद ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य बन चुका था. पाकिस्तान 11 जुलाई 1950 को IMF का सदस्य बना.
1958 में पाकिस्तान को पहले बेलआउट पैकेज की जरूरत पड़ी. तब पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मात्र 25 हजार डॉलर का अपना पहला कर्ज लिया था. यह एक स्टैंड-बाय अरेंजमेंट था, जिसका उद्देश्य 1947 में देश के गठन के बाद की वित्तीय अस्थिरता को कम करना था.
हालांकि पाकिस्तान ने इस पहले कर्ज से कोई राशि नहीं निकाली. लेकिन पाकिस्तान के मांगने की संस्कृति शुरू हो चुकी थी. यही वह शुरुआत थी, जिसने पाकिस्तान को ‘उधारी प्रधान’ देश बनने की राह पर धकेल दिया. आज 2025 में पाकिस्तान का कुल विदेशी कर्ज 76 खरब पाकिस्तानी रुपये अधिक हो चुका है. डॉलर में ये रकम 130 बिलियन डॉलर है.
आज पाकिस्तान की आर्थिक कहानी IMF, विश्व बैंक, और एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों पर निर्भरता का प्रतीक बन चुकी है.
पाकिस्तानी कर्जों की टाइमलाइन: 1958 से 2025 तक
पाकिस्तान 1950 से IMF का सदस्य है और 1958 से अब तक 24 बार IMF से कर्ज ले चुका है. इसके अलावा विश्व बैंक और ADB जैसे संस्थानों से भी पाकिस्तान ने भारी कर्ज लिया.
1965
ये वो साल था जब पाकिस्तान भारत से जंग लड़ रहा था. निश्चित रूप से पाकिस्तान के पैसे नहीं था लेकिन धार्मिक और जंगी उन्माद में डूबे पाकिस्तान को युद्ध लड़ना था. पाकिस्तान ने इस साल IMF से 37,500 डॉलर लोन लिया.
1968
1965 में लोन लेने के 3 साल बाद ही पाकिस्तान को एक बार फिर से खर्चे की दिक्कत पड़ गई. 1968 में पाकिस्तान ने IMF से 75 हजार डॉलर का लोन फिर लिया.
1972, 73, 74
ये साल पाकिस्तान के लिए आर्थिक तबाही लेकर आए. पाकिस्तान 1971 में बांग्लादेश की जंग हार चुका था. बांग्लादेश आजाद हुआ इसके साथ ही फटेहाल पाकिस्तान का खजाना खाली था.
पाकिस्तान ने 1972 में IMF से 84 हजार डॉलर, 1973 में भी 75 हजार डॉलर और 1974 में भी 75 हजार डॉलर का लोन लिया.
1977, 80, 81
पाकिस्तान की कंगाली की कहानी जारी रही. 1977-80 आते आते पाकिस्तान शीतयुद्ध में अमेरिकी खेमे में शामिल हो चुका था. IMF पर अमेरिकी प्रभाव की वजह से पाकिस्तान को अब आसानी से लोन मिल रहे थे.
1977 में पाकिस्तान ने 80 हजार डॉलर, 1980 में 3.49 लाख डॉलर और 1981 में 7.30 लाख डॉलर का लोन लिया.
1988 में पाकिस्तान को फिर से कर्जे की जरूरत पड़ी. तब बेनजीर भुट्टो देश की प्रधानमंत्री थीं. उन्होंने 1988 में IMF से 1,94,480 डॉलर और 3,82,410 डॉलर का लोन लिया.
1990 में नवाज शरीफ की सरकार ने आईएमएफ के पास न जाने का निर्णय लिया, इसके स्थान पर सऊदी अरब जैसे मित्र देशों से ‘दान’ के रूप में पैसे लिए.
1993 में बेनजीर भुट्टो फिर से देश की प्रधानमंत्री, लेकिन बदकिस्मती से वे भी कटोरा लेकर आईं. उन्होंने IMF से 88 हजार डॉलर का लोन लिया.
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गर्त में जारी रही. 1994 में बेनजीर भुट्टो ने दो बार IMF से लोन लिया. पहली किस्त 1,23,200 डॉलर की थी और दूसरी किस्त 1,72,200 की.
1995 में बेनजीर ने फिर से कर्ज लिया. इस बार उन्हें 2,94,690 डॉलर का कर्ज IMF से लेना पड़ा.
1997 में नवाज शरीफ सत्ता में आए. भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बेनजी भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सबसे खराब स्थिति में थी.
शरीफ सरकार पहली बार तत्काल आधार पर IMF के पास गई और 20 अक्टूबर, 1997 को 2,65,370 डॉलर और 1,13,740 डॉलर कर्ज के लिए समझौता किया.
29 नवंबर 2000 को पाकिस्तान ने 4,65,000 अमेरिकी डॉलर लोन के रूप में लिया. एक साल बाद पाकिस्तान 06 दिसंबर 2001 को विस्तारित निधि सुविधा के तहत 8,61,420 अमेरिकी डॉलर के लिए फिर से IMF के पास गया.
2008: $7.6 बिलियन (वैश्विक वित्तीय संकट के बाद).
2013: $6.6 बिलियन (Extended Fund Facility के तहत).
2019: $6 बिलियन (Extended Fund Facility के तहत, आर्थिक स्थिरीकरण के लिए).
2023: $3 बिलियन का बेलआउट पैकेज.
2024: $7 बिलियन बेलआउट, जिसमें $1.3 बिलियन की पहली किस्त और $1.4 बिलियन क्लाइमेट रेजिलिएंस लोन शामिल.
2025: $1.02 बिलियन (EFF की दूसरी किस्त) और $1.4 बिलियन (रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी).
इसके अलावा पाकिस्तान ने कई परियोजनाओं के लिए विश्व बैंक और एशियन विकास बैंक से लोन लिया है. यही नहीं पाकिस्तान अपने कर्ज के कटोरे को अक्सर चीन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात के पास भी फैलाता रहता है.
भारत ने पाकिस्तान की कर्जे वाली नीति पर IMF के पास आपत्ति जताई है, भारत ने कहा है कि 1989 से अब तक के 35 वर्षों में पाकिस्तान को 28 वर्षों में आईएमएफ से धन प्राप्त हुआ है. पिछले 5 वर्षों में यानी कि 2019 से पाकिस्तान को IMF से चार बार कर्ज मिले हैं. भारत ने कहा है कि अगर पाकिस्तान के पिछले कर्ज वाले कार्यक्रम एक सुदृढ़ व्यापक आर्थिक नीति का वातावरण बनाने में सफल रहे होते तो पाकिस्तान को एक और बेलआउट कार्यक्रम के लिए फंड से संपर्क नहीं करना पड़ता.