
बांग्लादेश में पिछले साल हुए तख्तालट के बाद से सांप्रदायिक हिंसा में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के सत्ता से बेदखल होने के बाद से बांग्लादेश में 330 दिनों में सांप्रदायिक हिंसा की 2,442 घटनाएं हुईं. देश में अल्पसंख्यकों के हितों के लिए काम करने वाले एक संगठन ने गुरुवार (10 जुलाई) को यह दावा किया.
330 दिनों में सांप्रदायिक हिंसा के 2,442 मामले
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद ने नेशनल प्रेस क्लब में कहा, ‘‘इनमें से अधिकतर हिंसक घटनाएं पिछले साल 4 अगस्त और 20 अगस्त के बीच हुईं.’’ परिषद ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदायों को 4 अगस्त 2024 से 330 दिनों की अवधि में सांप्रदायिक हिंसा की 2,442 घटनाओं का सामना करना पड़ा.
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर जुल्म
बयान में कहा गया है कि हिंसा की प्रकृति हत्याओं और सामूहिक दुष्कर्म समेत यौन उत्पीड़न से लेकर उपासना स्थलों पर हमले, घरों और व्यवसायों पर कब्जा, धर्म की कथित मानहानि के आरोप में गिरफ्तारियां और विभिन्न संगठनों से अल्पसंख्यकों को जबरन हटाने तक थी. पीड़ितों में अल्पसंख्यक समूहों से संबंधित पुरुष, महिलाएं और किशोर शामिल थे.
अंतरिम सरकार ने घटनाओं को स्वीकार करने से किया इनकार
बयान में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर अपराधी मुकदमे या अभियोजन से बच निकले. मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार ने ऐसी घटनाओं को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और उन्हें राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया है. परिषद के एक वरिष्ठ नेता नर्मल रोसारियो ने कहा कि अंतरिम सरकार की सुधार पहलों में अल्पसंख्यक समुदायों को बार-बार दरकिनार किया गया है, जो हमारे लिए सबसे निराशाजनक है.’’
उन्होंने कहा कि हम सभी के साथ मिलकर चलना चाहते हैं. एक अन्य नेता निमचंद्र भौमिक ने कहा कि समाज में विभाजन किसी के लिए भी सुखद बात नहीं है.’’ परिषद के कार्यवाहक महासचिव मनिंद्र कुमार नाथ ने कहा, ‘‘दरअसल, सरकार अल्पसंख्यकों पर दमन की घटनाओं को नजरअंदाज करती है. हम उचित न्याय की मांग करते हैं.’’
साल 2022 की जनगणना के अनुसार, बांग्लादेश में हिंदू सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है, जिनकी कुल जनसंख्या 7.95 फीसदी है. उसके बाद बौद्ध (0.61 फीसदी), ईसाई (0.30 फीसदी) और अन्य (0.12 फीसदी) हैं.
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